Monday 27 July 2015

वो झींगुरों की बातें -

वो झींगुरों की बातें -

रात की कचकच काली अंधेरी और झींगुरो की बिरह गीत, तो ऐसे पल मे तन्हा मन अपनी विरानीयों को दूर करने के लिए कोई ना कोई रास्ता निकाल ही लेता है । तन्हाईयों का रात मे आने का राज तो ना राज ही है, ना ही आवाज ही है । कुछ भी हो परन्तु मेरे लिए तो हमराह है, यह गुमशुम - सी  अंधेरी शोर । अंधेरे  में भी राह मिल ही जाते है, अगर दिल में रूचि होगी  तब । ओ हैलो डेल्ही, मैंने  तेरी  रूचि को नही बल्कि दिल मे छुपी तमन्ना के बारे में कहा  है, ओ. के. ना । हाँ, यार क्योंकि यह तन्हाईयाँ मुझे अंधेरे  में भी लिखने व सोचने  का  अविराम  साथ देती है, जो कि आजतक मुझे किसी ने ना दिया । आज तो अंधेरा  मेरे दिल में  प्यार की रोशनी जगमगा दिया , बिल्कुल चाँदनी की  तरह ।आज बिजली नही थी और रहती भी कहाँ है रात में , बेचारे हम गरीबन की झुग्गी में और मिट्टी का तेल तो अब कान में डालने के लिए  ही काफी है तो भला पढ़ाई - लिखाई के लिए ढिबरी कहाँ से जले । धन्यवाद चाईनीज मोबाइलो का जो कि हमारे रात में काम आ जाती है । रात के अंधेरे में मोबाइल को अपना डायरी बना  कर दिल के  तनाव को शब्दो का रूप दे रहा था कि तभी एक - दो सफेद फतींगे स्क्रीन पर बैठे । सोचा कि मार दूँगा  तबतक  इक और फतींगा मेरे उँगली  को थाम लिया तो सचमुच ऐसा लगा कि मेरे जैसे यह भी तन्हाईयों में घिरे है और जैसे ही मुझे तन्हा देखे है, मेरा साथ देने आ गए है । चलो यार इंसान ना सही, कोई  तो है मेरे तन्हा सफर में । इंसान तू भी जाग जा रे!  खुद को अकेला पाकर कबतक सोएगा?  खामोशी के चादर से बाहर तो देख  कही ना कही,  कोई तो है जो उम्मीदों के चिराग जलाए खङा है बस तेरे ही जाग जाने का ।

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